जनरल सुलेमानी के पीछे क्यों पड़ा था अमरीका?

ईरान के एक सैन्य कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी के अमरीकी हमले में मौत के बाद अंतराष्ट्रीय राजनीति में हड़कंप मच गया है, सबको चिंता है कि कहीं ये मसला गंभीर शक्ल ना ले ले.

अमरीका के लिए उनका मारा जाना इतनी बड़ी बात थी कि ख़ुद राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्वीट किया जिसमें केवल अमरीकी राष्ट्रध्वज की तस्वीर थी - यानी इस घटना को एक तरह से राष्ट्रपति ट्रंप अमरीका का राष्ट्रीय गौरव की तरह पेश कर रहे थे.

और कुछ ऐसा ही सुर ईरान का भी था जहाँ के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने एक बयान जारी कर कहा कि ईरान और दूसरे देश इसका बदला लेंगे.

ऐसे में सबसे पहला सवाल यही उठता है कि आख़िर ऐसी क्या बात थी जनरल क़ासिम सुलेमानी में कि अमरीका ने एक तरह से उनको घेरकर ठिकाने लगाया? क्या किया था जनरल सुलेमानी ने? कौन था ये ईरानी जनरल?

ईरान का दूसरा ताक़तवर शख़्स
जनरल क़ासिम सुलेमानी का क़द ईरान के पावर-स्ट्रक्चर में बहुत बड़ा था. ईरान के सबसे ताक़तवर नेता - सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई - के बाद अगर ईरान में किसी को दूसरा सबसे ताक़तवर शख़्स समझा जाता था तो वो थे - जनरल क़ासिम सुलेमानी.

जनरल सुलेमानी क़ुद्स फ़ोर्स नाम की एक सैन्य टुकड़ी के प्रमुख थे. ये टुकड़ी एक तरह से विदेश में ईरान की सेना के जैसी है जो अलग-अलग देशों में ईरानी हितों के हिसाब से किसी का साथ तो किसी का विरोध करती है.

इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि ईरान में कहने को विदेश मंत्री होता है, लेकिन असल विदेश मंत्री की भूमिका क़ुद्स फ़ोर्स के प्रमुख ही निभाते हैं.

ऐसा समझा जाता है कि बीते वर्षों में जब सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ विद्रोह का बिगुल बजा, तो उसे दबाने में सीरियाई राष्ट्रपति की असल मदद जनरल सुलेमानी ने ही की थी.

ऐसे ही इराक़ में जब इस्लामिक स्टेट मज़बूत होने लगा तो उसे परास्त करने में भी उनकी भूमिका अहम रही. उन्होंने इराक़ में ईरान-समर्थक अर्धसैनिक बलों का हाथ मज़बूत किया.

जनरल सुलेमानी लंबे समय तक पर्दे के पीछे रहकर अभियानों की अगुआई करते रहे, मगर कुछ साल पहले वो ख़ुलकर सामने आए और इसके बाद वो ईरान में इतने लोकप्रिय हो गए कि उनके ऊपर लेख लिखे गए, डॉक्यूमेंट्रियाँ बनीं और यहाँ तक कि पॉप गीत भी बनने लगे.

अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के एक पूर्व अधिकारी जॉन मैग्वायर ने छह साल पहले अमरीकी पत्रिका न्यूयॉर्कर से कहा - जनरल सुलेमानी मध्य-पूर्व में अभियान चलाने वाले सबसे ताक़तवर शख़्स हैं.

कमांडर बनने से पहले का जीवन
ईरान के दक्षिण-पश्चिम प्रांत किरमान के एक ग़रीब परिवार से आने वाले सुलेमानी ने 13 साल की आयु से अपने परिवार के भरण पोषण में लग गए. उनकी पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाई थी.

अपने ख़ाली समय में वे वेटलिफ्टिंग करते और ख़ामेनेई की बातें सुनते थे.

फॉरेन पॉलिसी पत्रिका के मुताबिक़ सुलेमानी 1979 में ईरान की सेना में शामिल हुए और महज़ छह हफ़्ते की ट्रेनिंग के बाद पश्चिम अज़रबैजान के एक संघर्ष में शामिल हुए थे.

ईरान-इराक़ युद्ध के दौरान इराक़ की सीमाओं पर अपने नेतृत्व की वजह से वे राष्ट्रीय हीरो के तौर पर उभरे थे.

बताया जाता है कि वो देखते-देखते ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली ख़ुमैनी के बेहद क़रीब आ गए.

सुलेमानी ने इराक़ और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के मुक़ाबले कुर्द लड़ाकों और शिया मिलिशिया को एकजुट करने का काम किया.

हिज़्बुल्लाह और हमास के साथ-साथ सीरिया की बशर अल-असद सरकार को भी सुलेमानी का समर्थन प्राप्त था.

दूसरी तरफ़ सुलेमानी को अमरीका अपने सबसे बड़े दुश्मनों में से एक मानता था.

अमरीका ने क़ुद्स फ़ोर्स को 25 अक्तूबर 2007 को ही आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था और इस संगठन के साथ किसी भी अमरीकी के लेनदेन किए जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया.

सद्दाम हुसैन के साम्राज्य के पतन के बाद 2005 में इराक़ की नई सरकार के गठन के बाद से प्रधानमंत्रियों इब्राहिम अल-जाफ़री और नूरी अल-मलिकी के कार्यकाल के दौरान वहां की राजनीति में सुलेमानी का प्रभाव बढ़ता गया.

उसी दौरान वहां की शिया समर्थित बद्र गुट को सरकार का हिस्सा बना दिया गया. बद्र संगठन को इराक़ में ईरान की सबसे पुरानी प्रॉक्सी फ़ोर्स कहा जाता है.

2011 में जब सीरिया में गृहयुद्ध छिड़ा तो सुलेमानी ने इराक़ के अपने इसी प्रॉक्सी फ़ोर्स को असद सरकार की मदद करने को कहा था जबकि अमरीका बशर अल-असद की सरकार को वहां से उखाड़ फेंकना चाहता था.

ईरान पर अमरीकी प्रतिबंध और सऊदी अरब, यूएई और इसराइल की तरफ़ से दबाव किसी से छुपा नहीं है.

और इतने सारे अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच अपने देश का प्रभाव बढ़ाने या यूं कहें कि बरक़रार रखने में जनरल क़ासिम सुलेमानी की भूमिका बेहद अहम थी और यही वजह थी कि वो अमरीका, सऊदी अरबऔर इसराइल की तिकड़ी की नज़रों में चढ़ गए थे. अमरीका ने तो उन्हें आतंकवादी भी घोषित कर रखा था.

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